महामृत्युंजय मंत्र – शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित यह महामंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है। इस मंत्र में भगवान शिव के महामृत्युंजय स्वरूप से आयु रक्षा और अन्य विघ्नों से रक्षा की प्रार्थना की गयी है।
इस मंत्र का दीर्घ या लघु स्वरूप का जप करने से व्यक्ति हमेशा सुरक्षित रहता है। यह मंत्र कई प्रकार से प्रयोग में लाया जाता है सामान्य भी और विशेष भी। कुंडली के कुछ विशेष दोषों को दूर करने में महामृत्युंजय मंत्र सबसे ज्यादा कारगर है।
महामृत्युंजय मंत्र के प्रकार एवं जाप के फायदेः
एकाक्षरी महामृत्युंजय मंत्रः
यह मंत्र हैः ‘ हौं ’
इस मंत्र का जाप रूद्राक्ष की माला से प्रतिदिन प्रातः काल 108 बार करना चाहिए। मंत्र जप करने के बाद किसी जरूरतमंद को दवाइयां दान करें। छत पर पक्षियों के लिए दाने-पानी की व्यवस्था करें। ऐसा करने से व्यक्ति को निरोगी जीवन की प्राप्ति होती है और साथ ही व्यक्ति का यश बढ़ता है।
त्रयक्षरी महामृत्युंजय मंत्रः
यह मंत्र हैः “ॐ जूं सः ”
जब व्यक्ति को छोटी-छोटी बीमारी नियमित रूप से परेशान करती रहती हों या व्यक्ति के साथ बार-बार दुर्घटना हो रही हो तो यह मंत्र बहुत ही प्रभावशाली होता है।
ऐसे जातक को रूद्राक्ष की माला पर रात को साने से पहसे 27 बार या 108 बार जप करना चाहिए। दूसरे दिन सुबह कुत्तों को दूध और रोटी व चीटियों को चीनी खिलानी चाहिए। इससे व्यक्ति की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
शास्त्रों में इस मंत्र का जाप तीन लाख लिखा गया है। अगर कोई व्यक्ति इस मंत्र का तीन लाख बार जप कर लेता है तो बह कैंसर जैसी भंयकर बीमीरी से भी छुटकारा पा सकता है।
चतुराक्षरी महामृत्युंजय मंत्रः
यह मंत्र हैः “ॐ हौं जूं सः”
अगर कोई जातक किसी बीमारी के कारण ऑपरेशन जैसी अवस्था तक जा पहुंचा है तो यह मंत्र उसके लिए बहुत लाभकारी है।
प्रत्येक दिन जातक को सुबह भगवान शिव के दर्शन करके, कम से कम तीन माला मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर इस मंत्र का चार लाख जप कर लिया जाये तो यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।
दशाक्षरी महामृत्युंजय मंत्रः
यह मंत्र हैः || ॐ जूं सः मम् पालय पालय सः जूं ॐ ||
दशाक्षरी महामृत्युंजय मंत्रः का दूसरा स्वरूप है लघु महामृत्युंदय मंत्र । अगर आप यह मंत्र अपने पुत्र के लिए करना चाहते है तो आपको यह इस प्रकार कहना होगाः
|| ॐ जूं सः मम् पुत्रम् पालय पालय सः जूं ॐ ||
जिसके लिए भी आप इस मंत्र का जप करें उसका नाम दशाक्षरी मंत्र में माम के स्थान पर प्रयोग करें। मंत्र जप करते समय तांबे के बर्तन में जल भरकर व्यक्ति के सामने मंत्र का जप करें। इस जल को रोगी व्यक्ति को पिलायें। ऐसा करने से रोगी व्यक्ति को संकट से छुटकारा जरूर मिलेगा।
मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मंत्रः
|| ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ||
|| ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ||
|| उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
|| स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ||
जब रोग असाध्य हो जाये और कोई आशा ना बचे तब इस मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मंत्र का कम से कम 64 बार जप करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार, अधिक कष्ट व मारकेश की दशा में इस मंत्र का जप सवा लाख होना चाहिए। मंत्र के जप के समय पूरे परिवार का अनुष्ठान में होना आवश्यक है।
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ:
हम लोग जो (सुगन्धिम्) शुद्ध गन्धयुक्त (पुष्टिवर्धनम्) शरीर, आत्मा और समाज के बल को बढ़ाने वाला (त्रयम्बकं) रूद्र रूप जगदीश्वर हैं, उसकी (यजामहे) निरन्तर स्तुति करें। इनकी कृपा से (उर्वारुकमिव) जैसे खरबूजा फल पककर (बन्धनान्) लता के सम्बंध से छूटकर अमृत के तुल्य होता है वैसे हम लोग भी (मृत्योः) प्राण व शरीर के वियोग से (मुक्षीय) छूट जावें (मामृतात्) और मोक्ष रूप सुख से श्रृद्धा रहित कभी ना होवें ।
महामृत्युंजय मंत्र साधना विधिः
- मंत्र का जप सुबह व शाम दोनो समय किया जा सकता है। कष्ट या संकट के समय किसी भी वक्त मंत्र का जाप किया जा सकता है।
- शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति के सामने बैठकर मंत्र जप करना चाहिए।
- मंत्र का जप रूद्राक्ष की माला से करें।
- मंत्र का उच्चारण शुद्ध और एक निश्चित संख्या में करें।
- मंत्र का जप कुशा के आसन पर बैठकर करें।
- जप करते समय भगवान शिव का अभिषेक करते रहें।
- पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके ही मंत्र का जप करें।
- मन को शांत रखें।
सुबह हाथ को नाभि के पास रखकर माला द्वारा मंत्र जाप करना चाहिए। दोपहर में दिल के पास हाथ रखकर मंत्र जाप करना चाहिए। शाम को चेहरे के सामने हाथ रखकर मंत्र जाप करना चाहिए।
घर में बैठकर मंत्र जपने से केवल एक गुणा फल मिलता है। गौशाला में मत्र जाप से 100 गुना फल मिलता है। बगीचे या तीर्थ स्थान पर हजार गुणा फल मिलता है।
पर्वत पर मंत्र जाप करने से दस हजार गुणा फल मिलता है। नदी के किनारे मंत्र जाप करने से 1 लाख गुणा फल मिलता है। शिवालय में शिवलिंग के सामने बैठकर जप करने से 1 करोड़ गुणा फल मिलता है।