हिन्दी शायरी | गुलजार | मिर्जा ग़ालिब | मुनव्वर राणा | राहत इंदौरी | गुलज़ार | निदा फ़ाजली | अमीर क़जलबंश | साहिर लुधियानवी | बशीर बद्र | खुशबीर सिंह शाद | रईस अमरोहवी | शुजा खावर | कैफी आजम

              हिन्दी शायरी

                 1

हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,

हमारा शहर तो य़ूं ही रास्ते में आया था।

                 2

वह अक्लमंद कभी जोश में नहीं आता,

गले तो लगता है, आगोश में नहीं आता।

                 3

शराफतों की यहां कोई अहमियत ही नहीं,

किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है।

                4

लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती बस एक मां है,

जो कभी ख़फ़ा नहीं होती। (मुनव्वर राणा)

                5

तू जो चाहे तो तेरा झूठ भी बिक सकता है,

शर्त इतनी है कि, सोने का तराजू रख ले। (राहत इंदौरी)

                6

चुपके-चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है,

हमको अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है।

               7

किस क़दर आसां होती रिश्ते पर होते लिबास,

और बदल लेते कमीज़ो की तरह। (गुलज़ार)

              8

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है,

किस छत को भिगोना है। (निदा फ़ाजली)

                9

मेरे जुनून का नतीजा ज़रूर निकलेगा,

इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा। (अमीर क़जलबंश)

               10

हुकूमत पर्दा-पोशी में बहुत मसरूफ है लेकिन,

कहां से आ रहा है ये धुआं बच्चे समझते हैं। (मुनव्बर राणा)

               11

आप दौलत के तराजू में दिलों को तौलें,

हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं। (साहिर लुधियानवी)

              12

अब जो बाज़ार में रखे हो तो हैरत क्या है,

जो निकलेगा वो पूछेगै ही कीमत क्या है।

              13

हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है,

हमें ढूंढेगी कल दुनिया पुराने इश्तिहारों में।

             14

कुछ जुल्म ओ सितम सहने की आदत भी है हमको,

कुछ ये है कि दरबार में सुनवाई भी कम है।

              15

ऐ आसमां तेरे खुदा का नहीं है ख़ौफ,

डरते हैं ए ज़मीन तेरे आदमी से हम

             16

कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते,

किसी की आंख में रह कर संवर गए होते। (बशीर बद्र)

             17

बुलंदियों का बड़े से बड़ा निशान छुआ,

उठाया गोद में माँ ने तब आसमान छुआ। (मुनव्वर राणा)

            18

आज भी दिल्ली में कुछ लोग हैं ऐसे कि,

जिन्हें आप कहकर जो पुकारो तो बुरा मानते हैं। (राहत इंदौरी)

                   19

खुशियां देते वक्त अक्सर खुद ग़म में मर जाते हैं,

रेशम देने वाले कीड़े रेशम में मर जाते हैं। (खुशबीर सिंह शाद)

                  20

दिल भी तोड़ा तो सलीके से ना तोड़ा तुमने,

बेवफाई के भी कुछ आदाब हुआ करते हैं।

                 21

ख़ामोश जिन्दगी जो बसर कर रहे हैं हम,

गहरे समंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम। (रईस अमरोहवी)

                 22

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना,

जहां दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता। (बशीर बद्र)

                 23

दिल सलीके से उगा रात ठिकाने से रही,

दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही। (निदा फाजली)

                 24

दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है,

और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नही जाता।

                 25

दिल की बातें दूसरों से मत कहो लूट जाओगे,

आजकल इजहार के धंधे में है घाटा बहुत। (शुजा खावर)

                 26

उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

                27

तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,

दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे। (गुलजार)

               28

समझदार एक मैं हूं, बाकि सब नादान

बस इसी भ्रम में घूम रहा आजकल हर इंसान।

               29

खुल सकती हैं गांठें, बस जरा से जतन से….

पर लोग कैंचियां चलाकर, सारा फसाना बदल देते हैं।

               30

वक्त बदलता है, जिंदगी के साथ जिंदगी बदलती है,

मौहब्बत के साथ मोहब्बत नहीं बदलती अपनों के साथ बस अपने बदल जाते हैं बक्त के साथ।

                31

जरा नजरों से देख लिया होता, अगर तमन्ना थी डराने की,

हम यूं ही बेहोश हो जाते, क्या जरूरत थी मुस्कुराने की।

                 32

तुम चाहो या ना चाहो, इसका गम नहीं, तुम पास से गुजर जाओ, तो चाहत से कम नहीं,

माना के मेरी चाहतों की तुम्हें कद्र नहीं कद्र मेरी उनसे पूछो जिन्हे मैं हासिल नही।

                 33

नजरें मिले तो प्यार हो जाता है, पलकें उठे तो इजहार हो जाता है,

न जाने क्या कशिश चाहत में के कोई अंजान भी हमारी जिंदगी का हकदार हो जाता है।

                 34

हर आइने की किस्मत में तस्वीर नहीं होती हर किसी की एक जैसी तकदीर नहीं होती,

बहुत खुश नसीब हैं वो जिनके हाथों में मिलने के बाद बिछड़ने की लकीर नहीं होती।

                 35

तेरा बजूद तेरी शख्सियत, कहानी क्या किसी के काम न आए तो जिंदगानी क्या हवस है जिस्म की,

आंखों से प्यार गायब है बदल गए हैं सभी इश्क के माएने क्या।

                 36

मै चुप रहा तो और गलतफहमियां बढ़ी,

वो भी सुना है उसने जो मैनै कहा नही।

                37

कभी हम पर वो जान दिया करते थे, जो हम कहते थे, मान लिया करते थे,

अब पास से अनजान बनकर गुजर जाते हैं, जो कभी दूर से हमें पहचान लिया करतै थे।

                38

बहुत दूर मगर बहुत पास रहते हो आंखो से दूर मगर दिल के पास रहते हो,

मुझे बस इतना बता दो क्या तुम भी मेरे बिना उदास रहते हो।

                  39

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी,

जो वक्त बीत गया मुझको आज़माने में। कैफी आजम

                  40

मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ की निगाह,

जी खुश तो हो गया मगर आंसू निकल पड़े। कैफी आजमी

                  41

उधर वो बद- गुमानी है, इधर ये ना- तवानी है,

न पूछा जाए उससे और न बोला जाए मुझसे। मिर्जा ग़ालिब

                  42

चंद रातों के ख्वाब उम्र भर की नींद मांगते हैं। गुलजार

                  43

एक न इक रोज तो होना है ये जब हो जाये,

इश्क का कोई भरोसा नहीं कब हो जाये। मुनव्वर राणा

                 44

हम तो मजाक में भी किसी को दर्द देने से डरते हैं,

ना जाने लोग कैसे सोच-समझकर दिलों से खेल जाते हैं।

                45

दिल तोड़कर वो मेरा खुश है, तो शिकायत कैसी..

अब मैं उन्हें खुश भी न देखूं तो फिर ये मोहब्बत कैसी..

                46

उलफत के मारों से न पूछो आलम इंतजार का,

पतझड़ सी है जिंदगी खयाल है बहार का

                47

कब कयामत से क्या डरे कोई, अब कयामत रोज आती है,

भागता हूं मै जिंदगी से खुमार, और नागिन डसे सी जाती है।

                48

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक कौन जीता है,

तेरी जुल्फ के सर होने तक। मिर्जा गालिब

               49

तुझसे बिछड़ा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी,

इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जेसा था। मुनव्वर राणा

              50

अब आपकी मर्जी है संभालें न संभालें खुशबू की तरह,

आपकी रूमाल में हम हैं। मुनव्वर राणा

              51

झूठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता,

डुबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने।

              52

नदुश्मनी लाख सही, खत्म न कीजे रिश्ता,

दिल मिलें या न मिलें हाथ मिलाते रहिए।

              53

नफरतों की जंग में देखो ये क्या-क्या हो गया,

सब्जियां हिंदु हुईं, बकरा मुसलमां हो गया।

              54

खुद पुकारेगी मंजिल तो ठहर जाऊंगा,

वरना खुद्दार मुसाफिर हूं गुजर जाऊंगा।

             55

तमाम उम्र हम एक-दूसरे से लड़ते रहे,

मगर मरे तो बराबर में जाके लेट गए।

            56

बात बहुत मामूली-सी थी उलझ गई तकरारों में,

एक जरा-सी जिद ने आखिर दोनों को बर्बाद किया।

             57

ऐसा कहाँ कि शहर के मंजर बदल गए मंजर वही हैं,

सिर्फ सितमगर बदल गए।

            58

बदला ना अपने आप को जो थे,

वही रहे मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे।

           59

शुक्र करो हम दर्द सहते हैं, लिखते नहीं,

वरना कागजों पर लफ्जों के जनाजे उठते। (पीयूष मिश्रा)

           60

उसके दूश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा,

वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा।

           61

रोज-रोज गिरकर भी मुकम्मल खड़ा हूं,

ऐ मुश्किलो। देखो मैं तुमसे कितना बड़ा हूं।

          62

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,

होठों पे लतीफ़े हैं, आवाज़ में छाले हैं। (जावेद अख्तर)

          63

मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक्त,

मैं गया वक्त नहीं हूँ कि फिर आ भी ना सकूँ। (मिर्ज़ा गालिब)

              64

जब किसी से कोई गिला रखना सामने अपने आईना रखना,

मिलना जुलना जहां जरूरी हो मिलने-जुलने का हौंसला रखना।

             65

बेहतर दिनों की आस लगाते हुए,

हबीब हम बेहतरीन दिन भी गंवाते चले गए।

                66

बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है,

बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है। (मुनव्वर राणा)

               67

सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते,

हर दर पर जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते।

               68

जमीं किसी की नहीं आसमां किसी का नहीं,

ना कर मलाल कि कोई यहां किसी का नहीं।

               69

बहुत दिनों से इन आंखों को यही समझा रहा हूं में,

ये दुनिया है, यहां तो इक तमाशा रोज़ होता है।

               70

तुम हकीकत को लिए बैठे हो,

तो बैठे रहो ये ज़माना है इसे हर दिन फ़साने चाहिए।

              71

जिन्दगी ने झेले हैं, सब अज़ाब दुनिया के,

बस रहे हैं दिल में फिर भी खव्वाब दुनिया के।

              72

तलब करें तो ये आंखें भी उनको दे दें हम,

मगर वो तो इन आंखों के ख्वाब मांगते हैं।

              73

कुछ लोग ख्यालों से चले जाएं तो सोएं,

बीते हुए दिन-रात न याद आएं तो सोएं।

              74

खोते हैं अगर जान तो खो लेने दे, ऐसे में जो पाएगा वो हो लेने दे,

इस उम्र पड़ी है सब्र भी कर लेंगे, इस वक्त तो जी भरके रो लेने दे।

              75

आओ सारै पहन लें आइने,

सारे देखेंगे अपना ही चेहरा। (गुलजार)

              76

हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,

हमारा शहर तो य़ूं ही रास्ते में आया था।

               77

खामोश बैठें तो लोग कहते हैं, उदासी अच्छी नहीं,

जरा-सा हंस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछते हैं।

              78

टूट जाएगी तुम्हारी जिद की आदत उस दिन,

जब पता चलेगा कि याद करने वाला अब याद बन गया।

              79

सांस लेना भी कैसी आदत है, जिए जाना भी क्या रवायत है, कोई आहट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं आंखों में, पांव बेहिस हैं, चलते जाते हैं, इक सफर है जो बहता रहता है, कितने बरसों से कितनी सदियों से जिए जाते हैं जिए जाते हैं..। (गुलजार)

              80

हाल ए दिल नहीं मालूम लेकिन,

इस कदर यानी हमने अकसर ढूँढा तुमने अकसर पाया

              81

ना कर तू इतनी कोशिशों मेरे दर्द को समझने की,

पहले इश्क कर, फिर चोट खा, फिर लिख दवा मेरे दर्द की।

             82

शिकवा करूं भी तो किससे करूं,

ये अपना मुकद्दर है, अपनी ही लकीरें हैं।

             83

हमें भी नींद आ जाएगी, हम भी सो ही जाएंगे,

अभी कुछ बेकरारी है, सितारों तुम तो सो जाओ।

              84

मुझे खामोश देखकर इतना क्यों हैरान होते हो ऐ दोस्तो..

कुछ नहीं हुआ है बस भरोसा करके धोखा खाया है।

              85

या खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे या,

छलकती हुई आंखो को भी पत्थर कर दे।

              86

दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं, शायद, वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं,

मेरी गली से गुजरते हैं, छुपा के खंजर रू-ब-रू होने पर सलाम किया करते हैं।

             87

परवाने को शमा पर जलकर कुछ तो मिलता होगा,

यूं ही मरने के लिए कोई मोहब्बत नहीं करता।

             88

मिल सके जो आसानी से उसकी ख्वाहिश किसे है,

जिद्द तो उसकी है जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं है।

              89

कोई चरांग जलाता नहीं सलीके से,

मगर सभी को शिकायत हवा से होती है।

             90

ख्वाहिशों से भरा पड़ा है मेरा घर इस कदर,

रिश्ते जरा-सी जगह को तरसते हैं। (गुलज़ार)

              91

रगों में दौड़ते फिरने के हम नही काइल,

जब आंख ही से टपका तो फिर लहू क्या है। (मिर्जा गालिब)

              92

तुम लौटकर आने की तकलीफ दोबार मत करना,

हम एक बार की गई मोहब्बत दोबारा नहीं करते।

            93

छोड़ दिया मैंने अपने दिल का साथ, प्यार ने थाम लिया है तनहाई का हाथ,

इतना तो गुरूर है मुझे आज भले अहसासों ने छोड़ा, तनहाई न होगी दगाबाज।

             94

चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई,

कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआं। (गुलजार)

            95

मैं तो इसे वास्ते चुप हूं कि तमाशा न बने,

और तू समझता है मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं।

            96

एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है,

तुम ने देखा नहीं आंखों का समुंदर होना।

             97

मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,

मेरा बक्त भी बदलेगा तेरी राय भी।

            98

वो छोटी- छोटी उड़ानो पे गुरूर नहीं करता,

जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूंढता है।

            99

तुम जमाने के हो हमारे सिवाय,

हम किसी के नहीं तुम्हारे हैं।

           100

मैं कभी सिगरेट पीता नहीं मगर हर आने वाले से पूछ लेता हूं कि माचिस है,

बहुत कुछ है जिसे मैं फूंक देना चाहता हूं।

           101

जो निगाह ए नाज़ का बिस्मिल नहीं है,

वो दिल नहीं है, दिल नहीं है।

            102

बैठे बिठाए हाल ए दिल ज़ार खुल गया,

मैं आज उसके सामने बेकार खुल गया। (मुनव्वर राणा)

             103

सिर्फ एक स़फाह पलटकर उसने, बीती बातों की दुहाई दी है,

फिर वहीं लौट के जाना होगा, यार ने कैसी रिहाई दी है। (गुलजार)

              104

अब काश मेरे दर्द की कोई दवा न हो, बढ़ता ही जाये ये तो मुसल्सल शिफा न हो,

बागों में देखूँ टूटे हुए बर्ग ओ बार ही मेरी नज़र बहार की फिर आशना न हो।

              105

जो दिल के करीब थे, वो जबसे दुश्मन हो गए,

जमाने में हुए चर्चे हम मशहूर हो गए।

               106

अब जानेमन तू तो नहीं, शिकवा ए गम किससे कहें या

चुप रहें या रो पड़ें, किस्सा ए गम किससे कहें।

               107

तलाश मेरी थी और भटक रहा था वो, दिल मेरा था और धड़क रहा था वो,

प्यार का ताल्लुक भी अजीब होता है, आंसू मेरे थे और सिसक रहा था वो।

              108

लिखना था कि खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम,

मगर कमबख्त आंसू हैं कि कलम से पहले ही चल दिए।

                109

सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है,

उधर ही ले चलो कश्ती जहां तूफान आया है।

                  110

बदल जाओ वक्त के साथ या फिर वक्त बदलना सीखो,

मजबूरियों को मत कोसो हर हाल में चलना सिखो।

                                                                      111

के सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो,  सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो,

और यहां किसी को कोई रास्ता नही देता, मुझे गिरा के तुम संभल सको तो चलो।

                      112

तुम्हे बस ये बताना चाहता हूं,  कि मैं तुमसे क्या छुपाना चाहता हूं,

कभी मुझसे भी कोई झूठ बोलो,  मै हां में हां मिलाना चाहता हूं,

अदाकारी बड़ा दुख दे रही है,  मै सचमुच में मुस्कराना चाहता हूं।

                      113

मंजिले लाख कठिन आयें गुजर जाऊंगा, हौसला हार के बैठूंगा तो मर जाऊंगा,

चल रहे थे जो मेरे साथ कहां हैं  वो लोग, जो यो कहते थे कि रस्ते में बिखर जाऊंगा।।

                      114

परखना मत, परखने में कोई अपना नही  रहता, किसी भी आईने में देर तक चेहरा नही रहता,

बड़े लोगो से मिलने में हमेंशा फासला रखना,  जहां दरिया समंदर से मिला दरिया नही रहता।

Spread the knowledge

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *