नीच भंग राजयोग कैसे बनता है और कुंडली में इसके लाभ

नीच भंग राजयोग

नीच भंग राजयोग:

किसी कुंडली में जब कोई ग्रह नीच का होता है और कुछ नियमों के तहत अगर उस ग्रह का नीच भंग होता है तो यह योग नीच भंग राजयोग कहलाता है। किसी भी ग्रह की नीच भंग होने की शर्ते होती हैं जोकि आगे बतायी जा रहीं  हैं। नीच भंग की स्थिति में उस ग्रह से सम्बंधित बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं।

कुंडली  में  ग्रहों की दृष्टियाॅं और  उनकी उच्च नीच राशि जाननें के लिए पढ़े- Click here

 कुंडली में  कैसे होता है नीच भंगः

1- जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा हो परन्तु उसी घर में कोई दूसरा ग्रह उच्च का हो तो यह नीच भंग कहलायेगा। उदाहरण के लिए, नीचे दी गयी कुंडली में, मंगल चौथे भाव में कर्क राशि में बैठा है जोकि नीच का है। परन्तु चौथे भाव में ही गुरू भी बैठा है जो कि कर्क राशि में उच्च का है। इस अवस्था में मंगल का नीच भंग हो गया। यहां गुरू के उच्च होने के कारण मंगल का नीच भंग हो गया।

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2- दूसरी अवस्था में यदि कोई ग्रह किसी भाव में अपनी नीच राशि में बैठा है और अगर उस भाव पर किसी उच्च ग्रह की दृष्टि पड़ रही है तो उस ग्रह का नीच भंग माना जायेगा। उदाहरण के लिए, नीचे दी गयी कुंडली में शनि प्रथम भाव में मेष राशि में बैठा है जोकि नीच का है। परन्तु उस पर 10 वें भाव में मकर राशि में बैठे उच्च के मंगल की चौथी दृष्टि पड़ रही है। इसलिए सूर्य का नीच भंग माना जायेगा।

नीच भंग राजयोग

3- कुंडली के जिस भाव में कोई ग्रह नीच का हो, अगर उसी भाव में उस राशि का राशि पति बैठ जाये तो यह भी नीच भंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए, नीचे दी गयी कुंडली में शनि प्रथम भाव में मेष राशि में  स्थित है जोकि नीच का है । अगर प्रथम भाव में मेष राशि का स्वामी मंगल बैठ जाये तो यह नीच भंग राजयोग होगा।

नीच भंग राजयोग

4- कुंडली के किसी भाव में अगर कोई ग्रह नीच का हो और अगर उस भाव पर उस राशि के स्वामी ग्रह की दृष्टि पड़ जाये तो यह एक नीच भंग राजयोग कहलाता है। जैसे उदाहरण के लिए, नीचे दी गयी कुंडली में बुध ग्रह 11 वें भाव में मीन राशि में बैठा है जो कि नीच का है। कुंडली में इस भाव पर 5 वें भाव में बैठे गुरू की सातवी दृष्टि 11 वें भाव पर अपनी राशि पर पड़ रही है इसलिए इसका नीच भंग माना जायेगा।

नीच भंग राजयोग

5- अगले सूत्र के अनुसार, अगर किसी कुंडली में कोई ग्रह नीच का हो रहा हो, अगर उस राशि का जिसमे वह नीच का हो रहा है, उस राशि का स्वामी अगर लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में स्थित हो तो नीच भंग राजयोग होता है। उदाहरण के लिए, नीचे दी गयी कुंडली में बुध 11 वें घर में मीन राशि में नीचे के हैं, यहां मीन के स्वामी गुरू केंद्र में चौथे भाव में बैठे हैं जिस कारण इनका नीच भंग माना जायेगा।

6- किसी कुंडली में अगर कोई ग्रह नीच का हो रहा हो अगर उस कुंडली में वह ग्रह जिस राशि में नीच का हो रहा है अगर वह उच्च हो जाये तो यह नीच भंग राजयोग कहलाता है। उदाहरण के लिए नीचे दी गयी कुंडली में मंगल चौथे भाव में कर्क राशि में बैठा है जो नीच का है। यहां कर्क राशि का स्वामी दूसरे भाव में अपनी उच्च राशि वृष राशि में बैठा है जिस कारण इसका नीच भंग हो जायेगा।

7- अगर कुंडली में कोई ग्रह नीच का है और वह ग्रह जिस राशि में नीच का है अगर उस राशि का स्वामी उस ग्रह की राशि में बैठ जाये तो यह नीच भंग राजयोग कहलायेगा। उदाहरण के लिए, नीचे दी गयी कुंडली में शुक्र छठे भाव में कन्या राशि में बैठा है जहां वह नीच का है और उस राशि का स्वामी बुध 7 वे भाव में शुक्र की राशि में बैठा है। यहां राशि परिवर्तन के कारण शुक्र का नीच भंग हो गया।

8- कुंडली में दो नीच के ग्रह अगर आपस में दृष्टि सम्बंध बना ले तो यह भी नीच भंग राजयोग कहलाता है।  उदाहरण के लिए नीचे दी गयी कुंडली में, मंगल चौथे भाव में कर्क राशि में नीच का है और गुरू 10 वें भाव में मकर राशि में नीच का है। ये दोनो आपस में एक दूसरे को सप्तम दृष्टि से देख रहे हैं। इसलिए यहां इनका नीच भंग हो रहा है।

 

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