महात्मा गांधी ने हमको सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलना सिखाया। शांति और अहिंसा के दूत गांधी जी का संदेश समस्त विश्व के लिए है और इससे मानव जाति प्रभावित हुई है। आज मुझे, आप सबके सामने गांधी जयन्ती पर भाषण देते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है।
आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, सभी शिक्षक गण, सभी अतिथि गण और साथियों। महात्मा गांधी के – जन्म दिवस पर आप सबको बहुत बधाईयां और शुभकामनाएं।
2 अक्टूबर को हम महात्मा गांधी के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं। इसी दिन को वैश्विक स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
महात्मा गांधी को देश की आजादी में उनके द्वारा दिये गये अतुल्नीय योगदान की वजह से उन्हे राष्ट्रपिता से संबोधित किया जाता है। सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस ने उन्हे राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था।
महात्मा गांधी जिन्हे लोग प्यार से बापू(राष्ट्रपिता) कहते हैं, भारतीय राजनैतिक मंच पर 1919 से 1948 तक इस प्रकार छाए रहे हैं कि इस युग को भारतीय इतिहास का गांधी युग कहा जाता है।
मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर स्थान पर हुआ। 1891 में उन्होने इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास की और पहले राजकोट में और फिर बम्बई में वकालत करने लगे। 1893 में उन्हे दक्षिणि अफ्रीका की एक व्यापारिक कम्पनी से निमन्त्रण मिला और वह वहां चले गये।
उस समय दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद होता था जिसके कारण भारतीयों व अन्य देशों के लोगो पर दक्षिणी अफ्रीका सरकार के द्वारा तरह तरह के कर व पावंदिया लगायी जाती थी।
इनका विरोध करने पर सरकार द्वारा भारतीयों पर अत्याचार किया जाता था। यही बात गांधी जी को अच्छी नही लगी और उन्होने वहां की जनता को साथ लेकर आन्दोलन किया।
वहीं की तत्कालीन सरकार को गांधी जी के अहिंसत्मक आंदोलन के सामने झुकना पड़ा और सरकार को अपने कानूनों को बापस लेना पड़ा।
इसके बाद गांधी ने निश्चय किया कि वे आगे वकालत नही करेंगें अपितु अपने देश जाकर अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन में अपने देश का प्रतिनिधित्व करेंगें।
वहां उन्होनें गोरों द्वारा काले लोगों से रंगभेद की नीति के विरूद्ध विरोध प्रकट किया। फिर नटाल भारतीय कांग्रेस बनाई और जेल गए।
उन्होनें एशियाटिक अधिनियम और ट्रांसवाल देशान्तर वास अधिनियम के विरूद्ध भी विरोध प्रकट किया और अपना अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया।
दक्षिणी अफ्रीका की सरकार को तर्क की आवाज सुननी पड़ी और उन्होनें 1914 में भारतीयों के विरूद्ध अधिकतर कानून रद्द कर दिये।
1914 में गांधी जी भारत लौट आए और अपनी सेवाओं की मान्यता के फलस्वरूप अब महात्मा कहालने लगे। आने वाले कुछ समय तक वह भारतीय स्थिति का अध्ययन करते रहे।
1917 में उन्होंने बिहार के चम्पारऩ जिले में नील के बगीचों के यूरोपीय मालिकों के विरूद्ध भारतीय मजदूरों को एकत्रित किया।
1919 की जलियावाला बाग में हुई दुर्घटना और रौलेट ऐक्ट के पारित होने पर गांधी जी बहुत खिन्न हुए और और उन्होनें भारत की राजनीति में सक्रिय भाग लेना आरम्भ कर दिया।
उन्होन अंग्रेजों को शैतानी लोग कहा और अपनी असहयोग की नीति अपनाई। 1920 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। यह आन्दोलन 1930 में पुनः किया गया और 1940 में निजी रूप से भी।
सत्य के सच्चे पुजारी के रूप में उनका विश्वास था कि सत्य ईश्वर है और ईश्वर सत्य है और ईश्वर प्रेम है और प्रेम ही ईश्वर है। कुछ लोगों का विश्वास है कि गांधी की सत्यप्रियता हिन्दू धर्म से और अहिंसा बौद्ध जैन और ईसाई मत द्वारा प्रभावित थी।
गांधी जी ने सत्य और अहिंसा को अपने स्वप्नों के नवीन समाज का आधार बनाया। वह समस्त संसार के लिए स्वतन्त्रता मांगते थे, अर्थात अहिंसा लोभ, आक्रामण, वासनाओं और आकांक्षाओं जिन्होने राष्ट्रों को नष्ट कर दिया है, इत्यादि से भी स्वतन्त्रता।
उन्होने यंग इंडिया नामक पत्रिका में लिखा था, जिन ऋषियों ने हिंसा के बीच अहिंसा के सिद्धान्त को खोज निकाला वे न्यूटन से अधिक प्रखर बुद्धि वाले लोग थे, वे स्वंय वैलिंगटन से अधिक वीर योद्धा थे।
स्वंय हथियारों का प्रयोग जानते हुए भी उन्होंने इसकी व्यर्थता को अनुभव किया और उन्होने युद्ध से दुःखी संसार को बतलाया कि इसकी मुक्ति हिंसा द्वारा नहीं अपितु अहिंसा द्वारा सम्भव है।
गांधी जी ने जनता के सामाजिक सुधार के लिए प्रयास किया। उन्होने सभी प्रकार के असमानताओं को समाप्त करने का प्रयास किया। अछूतों के उद्धार के लिए कार्य किया और उन्हें हिरजन की संज्ञा दी। नशाबन्दी के लिए और हिन्दु मुस्लिम एकता के लिए भी प्रयास किया।
हम सबको गांधी जी द्वारा बताये गये रास्ते पर चलना चाहिए और अपने देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखने के लिए प्रयास करना चाहिए। इसी के साथ मै अपने शब्दों को विराम देता हूं। जय हिन्द जय भारत
धन्यवाद